भगवान वाल्मीकि त्रिकाल दर्शी थे | उन्होंने सम्पूर्ण रामायण रामायण कांड से पहले ही लिख दी थी |
भगवान वाल्मीकि को प्रभु श्री राम द्वारा सीता माता का त्याग से लेकर उनके धरती में समा जाने का भी पहले ही पता था | उन्हें स्वं परमपिता भ्रमदेव ने ही रामायण लिखने को कहा था | जब अयोध्या की प्रजा में जूठी मिथ्या के कारन प्रभु श्री राम को माता सीता का त्याग करना पड़ा था तो वह भगवान् वाल्मीकि के आश्रम ही गयी और उन्होंने उनसे बोला की वह सीता माता है यह बात आश्रम में किसी को पता न चले तत्पश्चात आश्रम में कुछ दिन के बाद माता सीता और प्रभु श्री राम के दो बड़े ही तेजसस्वी पुत्र हुए है | जिनका नाम था लव और कुश | कुश बड़े थे और लव छोटे थे दोनों भाई बड़े ही प्रकर्मी थे भगवन वाल्मीकि नै उनको शिक्षा दी सभी मंत्र विद्या सिखाया और उन्हें बड़े ही पराक्रमी बनाया और जब लव कुश थोड़े बड़े हो गए तोह भगवन वाल्मीकि ने उन्हें ऐसे अस्त्र सस्त्र दिए जो तीनो धरती पे किसी के पास नहीं थे इसका मतलब धरती पर कोई भी उनका सामना नहीं कर सकते थे लव कुश भले ही छोटे थे परन्तु उन्होंने अपनी वीरता से बड़े बड़े योद्धाओ और धनदारिओ को परास्त कर दया था | आश्रम में सीता माता नै एक पूजा करने की सोची जिस से लव कुश का मिलान उनके पिता प्रभु श्री राम से हो सके | जब वह पूजा के लिए बैठी थी उसी टाइम अयोध्या में प्रभु श्री राम ने अश्वमेघ यग का अनुष्ठान किआ इस यग मई पूरी धरती से बड़े बड़े ऋषि मुनिओ का आगमन हुआ था | परन्तु गुरुओ और ऋषि मुनिओ का कहना था की कोई भी यग अनुष्ठान बिना पत्नी के नहीं हो सकता इसके लिए पत्नी का होने आवशयक है इसके लिए सीता माता को बुलाना होगा | अयोध्या की प्रजा में कुछ लोगो का कहना था की भगवान राम को दूसरी शादी कर लेनी चाइए | उन्हें तीनो लोको कमाई कोई भी राजकुमारी शाद्दी के लिए मना नहीं कर सकती कुकी भगवान् श्री राम बड़े ही मनमोहक और प्रकर्मी थे उनसे बड़ा पराक्रमी और कोई नहीं है इसलिए हर देश को राजकुमारी तोह उनसे विवाह भी करना चाहती होंगी जब ये खबर भगवान राम के पास पहुंची तोह उन्होंने दूसरी शादी के लिए मना कर दिए एव गुरुजनो से कोई दूसरा मार्ग पूछ तोह गुरु जनो ने उन्हें बताया की सीता माता की प्रतिमा बनवानी किए जिस से आप ये यग कर सकोगे तोह सीता माता की बड़ी ही सुन्दर प्रतिमा बनाई गयी और फिर अश्वमेघ यग अनुष्ठान शरू हुआ और यग का घोड़ा छोड़ा गया और उसके माथे पे स्वर्ण अक्षरों में ये लिखा गया जो भी इस घोड़े का सम्मान करेगा उसे प्रभु श्री राम का स्नेह मिलेगा और जिस किसी ने इस घोड़े को पकड़ने की चेष्टा की उसे प्रभु श्री राम की सेना से युद्ध करना होगा |
तीनो लोगो में सभी को पता था की प्रभु श्री राम सा वीर और प्रकर्मी और कोई नहीं है
इसलिए किसी नै भी उनका घोडा पकड़ने की चेष्टा नहीं की अश्वमेघ का घोडा हर जगह से घूम आया परन्तु जब वे अयोध्या की सीमा पे आया और अयोध्या में प्रवेश किस तोह वही पर भगवान वाल्मीकि का आश्रम था और लव कुश वही पर थे जब उन्होंने उस घोड़े के माथे पे लिखी चुनौती को पड़ा तोह उन्होंने उस घोड़े को पकड़ लिए उसके पश्चात सेना ने उन्हें खूब समझाया की तुम अभी बालक हो ये घोडा वापिस कर दो परन्तु लव कुश ने घोडा वापिस नहीं किआ फिर सेना नै लव कुश पे आक्रमण कर दिए लव कुश पे पूरी सेना को परास्त कर दिए ये खबर वीर शत्रुघन को दी गयी फिर वीर शत्रुघन आये परन्तु लव कुश नै उन्हें भी परास्त कर दिए इस पश्चात महाबली लक्ष्मण आये जो बहुत बड़े वीर हैं उन्होंने लव कुश को बहुत समझाया परन्तु लव कुश कहने लगे उन्हें भगवान् श्री राम से मिलना है और कुछ प्रसन भी पूछने है तोह महाबली लक्ष्मण नै कहा में भगवान श्री राम की आज्ञा से ये घोडा लेने आया हूँ में ये बिना लिए नहीं जा सकता तत्पश्चात लव कुश और महाबलि लक्ष्मण में बहुत घमसान युद्ध हुआ अंत में लक्ष्मण जी को लवकुश पे बड़े ही घातक अस्त्र छोड़ने पड़े परन्तु लवकुश को भगवान् वाल्मीकि में ने विद्या सीखा रखी थी उन्होंने मंत्रो के जप से अपने चारो तरफ एक सुरक्षा कवच बना लिए जिस से लक्ष्मण जी का अस्त्र उन्हें कोई हानि नहीं पहुचा सका फिर लवकुश नै महाबली लक्षमण जी को भी मूर्छित कर दिए तत्पश्चात भरत महाबली हनुमान और सुग्रीव आये परन्तु लव कुश नै उन्हें परास्त करके पवन पुत्र हनुमान जी बंदी बना लिए हनुमान जी जान चुके थे की लव कुश माता सीता और प्रभु श्री राम के ही पुत्र है इसलिए वह उनवे हमला भी नहीं कर सकते थे तत्पश्चात स्व प्रभु श्री राम आये उन्होंने लवकुश को बहुत समझाया परन्तु वेह नहीं मने और प्रभु श्री राम को धनुस उठाने पे विवस कर दिया फिर वह भगवान् वाल्मीकि जी आ गए और उन्होंने लव कुश को समझाया और प्रभु श्री राम से माफ़ी मांगने को कहा लवकुश नै प्रभु श्री राम से माफ़ी मांगी और घोडा लोटा दिया | फिर सीता माता लव कुश को बताती है की प्रभु श्री राम ही उनके पिता है फिर लवकुश रामकथा सुनाने महल में जाते है और पूरी कथा सुनाते है की वह ही सीता माता और प्रभु श्री राम के पुत्र लव और कुश है तत्पश्चात भगवन वाल्मीकि और माता सीता और लव कुश महल में आते हैं और भगवन वाल्मीकि सबको घोर प्रतिज्ञा लेते हैं और कहते है की की लव कुश प्रभुः श्री राम और माता सीता के ही पुत्र है तत्पश्चात माता सीता प्रतिज्ञा लेते है धरती माता का आहवाहन करती हैं और धरती माता के साथ चली जाती हैं
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